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[36] ***************************************** छे, पण तेथी ते निमित्त ने वलगो रही बीजाने पण एज निमित्त ने स्वीकारवानो आग्रह करवो अने ते न स्वीकारे एटले तेने गालो देवीके अपवाद करवो ते कोई नो पण धर्म नथी पण ए धर्म भ्रष्टता छ। ___करकंडु ऋषिने बलद ने जोइने वैराग्य थयो तेथी तेओ बीजाने एम न कही शके के सर्व कोईए बलद राखी तेनी वृद्धावस्था जोइने वैराग्यवीन थq। श्री मल्लिनाथ प्रभुना पूर्व भवना छः मित्र राजाओ मल्लिनाथ प्रभुनी प्रतिमानी गंध थी कटाल्या अने ते वखते मल्लि प्रभुए उपदेश आप्यो तेथी छः राजाओने स्त्री शरीर अने विषयभोगनो अनित्यता, अस्थिरता, अने अनिष्टता समजाणी एथी श्री मल्लिनाथ प्रभुए पोतानी देशना माँ क्याँय न कह्यु के दरेक वैराग्यवान स्त्रीए पोताने घरे पोतानी प्रतिमूर्ति जेवी एक मूर्ति बनावीने तेमा अन्नना कोलिया नाखी तेने सडावी गँधावीने पुरुषोने वैराग्य पमाडवो, एम कदी बनेज नहिं, अने वैराग्य, निमित्त स्थूल अने जड़ ए वंदनीय पूजनीय न होय। अथवा जे साधन द्वारा आत्म साधना कराती होय, थती होय, ए साधन तो अनाशक्ति पणे उपयोग करीने तेने त्यागी देवूज पड़े, जो तेनापर सहेज पण मूर्छा भाव आवे तो तेतो परिग्रह गणाय, अने परिग्रह एटलेराग, अने राग होय त्यां द्वेष होयज, अने रागद्वेष एज कर्मना बीज ए बीजने बाल्या सिवाय आत्मकल्याण कदी न संभवे, एतो सर्वकोई समजी शके तेम छे, तो पछी स्थूल जड़ साधनने वलगी रही ए साधन ऊपर ममत्वभाव राखीने पोताने अशान्ति राग द्वेषनो वधारो करवो, अने अन्यने अशान्ति कराववी ए वुद्धजन नो काम नथी।
आत्म कल्याण नु स्थूल जड़ पण अति निकटनुं परम साधन शरीर छे, तेनापर पण मूर्छा भाव न राखवानुं श्री वीतराग देव अने सर्व महापुरुषो पोकारी २ ने कहे छे, अने ते एटले सुधीके ए स्थूल शरीरने कोई निंदे के
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