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परिशिष्ट
बारहसो छ्यासठ हायन में, विकट पहाड़ देख कानन में। बनवाये पगल्या पाहन में, तब से गढ़ गिरनार में।
तीरथ करने जाते हैं॥५॥ बारह सय पिच्चास्त्री वत्सर, बनवाया मंदिर आबू पर। तेजपाल अरु वस्तुपाल नर, हिंसा धर्म प्रचार में।
दोउ बढ़िया कहिवाते हैं ॥६॥ विक्रमार्क सौलह शत जानो, उपर बरस पच्चीस बखानो। तबसे शिखर तीर्थ प्रकटानो, देखो शिखर मझार में।
यह शिला लेख पाते हैं॥७॥ कर अनुमान शिखर गिरजाई, बेहद अटवी को कटवाई। बीस टोंक जग सेठ बनाई, मूढ़ अधर्म दुवार में।
धन व्यय कर हरषाते हैं॥८॥ अचरज विज्ञ बनें जड़ सेवें, जड़ की भक्ति मुक्ति किम देवें। यह तो बालक हू लखि लेवें, लाओ बुद्धि बिचार में।
इम सत गुरु चेताते हैं॥६॥
(दंडी दंभ दर्पण)
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