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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा ३१६ *******************************************
(३) उक्त पत्र वर्ष ४१ अंक २२ ता० ७-६-४२ पृ० ३६० में "जैन समाज की दो शाखाएं " शीर्षक लेख में लिखा है कि -
"जैतारण और मुर्शिदाबा के जैन मन्दिरों में बीसवीं शताब्दी की नूतन मूर्तियों पर खरतरों ने बारहवीं शताब्दी के नाम के शिलालेख खुदवा दिये हैं।" देख लिये मूर्तियों के लेखों की सच्चाई के नमूने ?
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उपयोगी पद्य थावर तीरथ संसार में, आधुनिक नजर आते हैं॥अंतर॥ जिसकर तीरे तीर्थ है सोई। देखो शब्द अर्थको जोई॥ सो तो शक्ति न दोसे कोई, सरिता और पहार में।
पिन कु गुरु भरमाते हैं॥१॥ जंगम तीरथ को नहीं ध्यावें, कल्पित जड़ तीर्थों पर जावे। धाम काम तज पाप कमावें, वो भव दधि की धार।
गहिरे गोते खाते हैं॥२॥ विक्रम संवतसर सुन भाई, एक सहिंस पैतालिश मांई। शत्रुञ्जय पर नींव लगाई, मंदिर बहु विस्तार में।
बनवाया बतलाते हैं॥३॥ देखो जिन भाषित आगम को, तजदो मिथ्याजाल भरमको। धारो हिरदे दया धरम को, पड़ो मती जंजार में।
हित धरकर समुझाते हैं॥४॥
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