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________________ ३०६ .. उपसंहार का संहार ********************************************* क्या खूब परिणाम निकाला? महाशय! जिसे हम चाहते ही नहीं, जिसकी हमें आवश्यकता नहीं, भला उस पर हक जमाकर हम क्यों अपनी उपाधि बढ़ावें? पूर्वजों के बनवाने और अपना हक जमाने से धर्म का क्या सम्बन्ध? संसार में कहावत है कि “बाप की तलाई में यदि पानी नहीं हो तो प्यासे ही मरना, या मिट्टी खाना, समझदारों का काम नहीं, सुज्ञ पुरुष उसे तत्काल छोड़कर सुखद स्थान ढूंढता है।" इसी प्रकार यदि किसी के पूर्वजों ने मूर्ति पूजकों की मान्यतानुसार मन्दिरादि बनाये हों तो इससे हमारे आत्म-कल्याण का कोई सम्बन्ध ही नहीं है। हम इन्हें निरर्थक समझते हैं, ऐसी निरर्थक वस्तुओं पर अपना अधिकार जमा कर अधिक परिग्रही बनना श्रावक के लिए अनुचित है। किन्तु सुन्दर मित्र के सुन्दर मानस पर हमें आश्चर्य होता है। आप साधु कहलाते हुए भी हक एवं अधिकार बढ़ाने का प्रयत्न कर, अधिकार छोड़ने वाले की टीका टिप्पणी करते हैं। शायद मूर्ति पूजक समाज में जाने पर इन्होंने अपने लिये कुछ निराले ही नियम बना लिये हों? . इसके सिवाय मालवा आदि देशों के कितने ही गांवों में मृत्यु आदि के मौके पर जाति रिवाज के अनुसार लोग मन्दिर जाया करते हैं। यह सबका हक है सो सुरक्षित है ही। हम तो यहाँ तक चाहते हैं कि इस रिवाज पर भी हमारी समाज को विचार कर परिवर्तन करना चाहिये, क्योंकि बहुत सी जगह इतने मात्र से ही अनिष्ट परिणाम हुए हैं। सुन्दर मित्र! अधिकारवाद से धर्म का कोई सम्बन्ध नहीं नहीं है। जहाँ अधिकार बाद है वहाँ झगड़ा है और उसके साथ कर्म बन्धन भी। यदि यह हक का भूत आप पर सवार नहीं होता तो आप में व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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