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२६८ मूर्ति पूजा के विरुद्ध-प्रमाण संग्रह ***************************学学********* करवा माटे मने एक पण प्रमाण वा विधान मली शक्यु नथी, वर्तमान कालमां मूर्तिपूजा ना समर्थनमा केटलीक कथाओ ने (चारण मुनिनी, द्रोपदीनी कथा, सूर्याभ नी कथा, विजयदेवनी कथा) पण आगल करवामां आवे छे किन्तु वाचकोए आ बाबत खास लक्ष्यमा लेवानी छे के विधि ग्रन्थों मां दर्शावातो विधि, आचार ग्रन्थों मां दर्शावातुं आचार विधान खास शब्दोमांज दर्शाववा मां आवे छे पण कोइनी कथाओं मांथी के कोइना ओठां लइने अमुक अमुक विधान वा आचार उपजावी शकातो नथी, एक कथामां तेना नायके जे अमुक जातआचरण कर्यु होय ते बधाने माटे विधेय के सिद्धांतरूप होइ शकतुं नथी,........मारुं तो एम मानवु छे के ज्यारे आचारना ग्रन्थों जुदाज रचवा मां आव्या छे-आवे छे, अने तेमां प्रत्येक नाना मोटा आचारों नुं विधान करवामां आव्युं छे-आवे छे, ते छतां तेमां जे विधान नो गंधपण न जणातो होय ते विधान ना समर्थन माटे आपणे कथाओ ना
ओठां लइए के कोइना उदाहरणो आपीए ते बाबतने हुं "तमस्तरण" सिवाय बीजा शब्दथी कही शकतो नथी, हुं “हिम्मत पूर्वक" कही शकुं छउं के में साधुओं तेम श्रावकों माटे देव दर्शन के देव पूजन नुं विधान कोई अङ्ग सूत्रोमां जोयु नथी, वाच्यु नथी, एटलुंज नहिं पण भगवती वगेरे सूत्रो मां केटलाक श्रावको नी कथाओ आवे छे तेमा तेओनी चर्यानी पण नोंध छे, परन्तु तेमां एक पण शब्द एवो जणातो नथी ते जे उपरथी आपणे आपणी उभी करेली देवपूजन नी अने तदाश्रित देव द्रव्यनी मान्यताने टकावी शकीए।
___ हुं आपणा समाजना धुरंधरो ने नम्रता पूर्वक विनंति करुं छु के तेओ मने ते विषेर्नु एक पण प्रमाण वा प्राचीन विधान-विधि वाक्य बताववेशे तो हुं तेओनो घणोज ऋणि थइश।"
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