________________
२६०
बत्तीस सूत्रों के नाम से गप्प ***** ** *********** *** ****** ****
इसके सिवाय तृतीय अङ्क श्री स्थानांग सूत्र के दशवें स्थान और भगवती सूत्र में दश प्रकार की वैयावृत्य निम्न प्रकार से बताई है, यथा -
“दसविहे वेयावच्चे प० तं० आयरिय वेयावच्चे, उवज्झायवेयावच्चे, थेरे वेयावच्चे, तवस्सिवेयावच्चे, गिलाणवेयावच्चे, सेहवेयावच्चे, कुलवेयावच्चे, गणवेयावच्चे, संघवेयावच्चे, साहम्मिवेयावच्चे।" ___ तथा श्री उमास्वति रचित तत्वार्थ सूत्र अ० ६ सूत्र २४ में भी वैयावृत्य का कथन इस प्रकार किया गया है - "आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्ष ग्लानगणकुल-संघसाधुमनोज्ञानाम् ॥"
यह दश विशेषण साधुओं के ही हैं। .
इस दश बोलों में-मन्दिर वैयावच्चे या मूर्ति वैयावच्चे का तो नाम ही नहीं है। इनमें भी वही नाम बताये गये हैं, इससे भी यही परिणाम निकलता है कि सूत्रकार को मन्दिर मूर्ति की वैयावृत्य इष्ट नहीं अन्यथा स्पष्टाक्षरों में यह विधान भी अवश्य होता। आश्चर्य तो इस बात का हैं कि मूर्तियों के मिथ्या मोह में पड़ कर सुन्दर मित्र ऐसे थोथे बचाव को आगे रखते हुए शब्दों और भावों की खींचतान करते हैं। क्या इसी बल पर सूत्र पाठ के प्रमाण दिखाने की प्रतिज्ञा की है? कहना नहीं होगा कि सुन्दर मित्र एकदम प्रतिज्ञा भंजक ठहर चुके हैं।
११. विपाक सूत्र श्रुतस्कन्ध २ के दशों अध्ययनों के श्रावकों और श्राविकाओं ने मूर्ति पूजा की, सुन्दरजी का ऐसा कथन एकान्त मिथ्या है। शायद सुन्दर मित्र सत्य लिखने की शपथ करके कलम चलाने बैठे हों? इस प्रकार मिथ्या प्रपंच करते हुए भी साधु कहलाना यह महदाश्चर्य है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org