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________________ २४४ चैत्य शब्द के अर्थ ******************************************** प्रवृत्ति चैत्यवासी तणी, सत्य विजय हो? बधी दीधी छोड़। यतिये मली सरुकरी, हजी सुधी हो? नहीं सके तोड़॥३०॥ . (ढाल २३ पृ० ७७) सुन्दर मित्र! सत्य है अभी भी चैत्यवासी जैसे ढंग मौजूद हैं, इतना ही नहीं दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं और इसका खास कारण है केवल “मूर्ति पूजा"। जब तक इसके चक्कर से आप लोग नहीं निकलेंगे तब तक शुद्ध साधुत्व का आना असंभव है। क्योंकि मूर्ति पूजकों में जितना शैथिल्य और आरम्भ समारम्भ चल रहा है, वो सब इसी की बदौलत है, साधुत्व के एकदम विपरीत उपदेश और यतियों जैसा आचार विचार सब इसीका परिणाम है, जैन साधु ऐसा उपदेश कदापि नहीं दे सकते। न ऐसा कथन जैन साधु का हो सकता है। (३५) चैत्य शब्द के अर्थ जैन आगमों में अनेक स्थानों पर चैत्य शब्द का प्रयोग मिलता है और विशेषकर जहाँ ग्राम या नगर आदि का वर्णन होगा वहाँ यह चैत्य शब्द प्रायः पाया ही जायगा। स्मारक विशेष में भी यह शब्द उपयोगी हुआ है। इस प्रकार चैत्य शब्द कई स्थानों पर अनेक अर्थों में व्यवहृत हुआ है*। ऐसे अनेकार्थी शब्द का कितने ही मूर्ति पूजक लोग, मन्दिर मूर्ति के हठ के कारण अन्य अर्थों का लोप कर केवल दो तथा तीन अर्थ ही करते हैं, पाठक देखें कि मूर्ति पूजक समाज के युगावतार और युग प्रधान कहे जाने वाले श्री विजयानंदसूरि ने इस चैत्य शब्द का पक्षपात के वश होकर किस प्रकार अर्थ किया है, यथा - * चैत्य शब्द के विशेष अर्थों के लिए देखें - संघ द्वारा प्रकाशित "लोकाशाह मत समर्थन” (पृ० ४०-४२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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