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जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
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यह स्मारक निर्माण केवल जैनियों में ही है, ऐसा कोई नहीं समझे । यह प्रथा लगभग सभी समाजों में और प्रायः संसार भर में है । भारतवर्ष में भी बड़े-बड़े शहरों में अनेक शासकों, जनमान्य अधिकारियों, श्रीमन्तों, देश नेताओं और जन सेवकों के स्मारक वर्तमान काल में मौजूद हैं, , जो हजारों के खर्चे से और उच्च कला को लेकर बने हैं। इसके सिवाय स्मारक भी कई प्रकार के बने और बन रहे हैं, जैसे - युद्ध में विजय पाने पर विजयस्तम्भ विजय का स्मारक, किसी जातीय महासभा के विराट अधिवेशन पर-अधिवेशन स्मारक, तप का स्मारक, (हरिजनों के लिए महात्माजी ने पूना में उपवास किये थे, तप पूर्ति के दिन स्मारक वृक्ष लगाया गया था) दानवीरों का स्मारक ( अनेक संस्थाओं में तैल चित्र रखे जाते हैं) जयन्ती स्मारक ( वार्षिकोत्सव मनाना) आदि अनेक प्रकार के स्मारक हैं, किन्तु कुछ अन्य श्रद्धालु जनता के सिवाय सभी जगह ये स्मारक, स्मारक रूप ही रहे हैं।
उक्त वस्तु स्थिति पर विचार करने पर हमारे पाठक यह समझ गये होंगे कि महापुरुषों के चैत्य- स्तूप अन्धभक्ति के लिए नहीं बने, न पूजा पाने के लिए बने, किन्तु स्मरणार्थ या स्थान की पवित्रता बनाने रखने के लिए ही बने हैं। लेकिन समय पाकर ये स्मारक पूजे जाने लगे। स्वार्थ पिपासुओं ने भी इसमें खूब हाथ बटाया, जिसकी भयंकरता यहाँ तक फैली कि ये चैत्यालय भोगालय की बराबरी करने लगे! यहाँ तक कि वेश्या का नृत्य भी धर्म के नाम पर इन धर्म मन्दिरों में होने लगा ( प्रभावक चरित्र ) ।
वास्तव में इन चैत्यों और स्तूपों से आत्मकल्याणकारी धर्म का कोई सम्बन्ध नहीं है। जैनागमों में तो इन चैत्यों, स्तूपों और देवालयों के बनाने में आरम्भ समारंभ (पाप) माना है। प्रश्न व्याकरण सूत्र इसका साक्षी है, उसमें हिंसा जनक कार्यों में इस तरह के शब्द हैं।
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