SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा ********************************** रही है ये तो केवल " समभावित चैत्य" का ही अर्थ "सुविहित प्रतिष्ठित जिन प्रतिमा" करते हैं क्या पक्षपात की भी कोई हद है ? कितने ही पक्षपाती बंधु " समभावित चैत्य" का अर्थ " समभावयुक्त जिन प्रतिमा" करते हैं, किन्तु यह अर्थ अनुचित है, क्योंकि यदि ऐसा है तो फिर यह भी मानना पड़ेगा कि मूर्ति के भी भाव (हृदय) होता है और जिनमूर्ति समभाव के सिवाय क्या मिथ्याभाव वाली भी होती है ? वास्तव में यहाँ चैत्य शद का अर्थ किसी भी हालत में मूर्ति नहीं हो सकता, क्योंकि इसके साथ " सम्यग् भावित " विशेषण है जो कि शरीर और आत्मा वाले सजीव मनुष्यादि से ही सम्बन्ध रखता है और मूर्ति तो जड़ होती है, उसके हड्डी, मांस, रक्त, चर्म आदि होते ही नहीं, न मन तथा हृदय ही होता है, फिर मूर्ति में सम्यग् भाव कैसे हो सकता है? और "समभाव वाली जिन प्रतिमा” अर्थ मानने वाले को हम पूछ सकते हैं कि - यदि आपकी मूर्तियें अन्तःकरण वाली हैं तो जैन समाज में नहीं, मूर्ति पूजक समाज में इतने बखेड़े क्यों होते हैं? फूट और कलह का नग्न ताण्डव क्यों मचता है ? मामूली बातों के लिए आपस में ही जूते मार और डंडे मार चलकर दवाखानों पर तबाही क्यों डाली जाती है? ये अन्तःकरण वाली इनकी मूर्तियें, क्यों नहीं समाधान कर देती ? क्यों सम्वत्सरी के एक दिन आगे पीछे के झगड़े में खून खराबियां मचवाती है? यदि ये मूर्तियें जिनको ये लोग अन्तःकरण वाली मानते हैं और भक्ति पूर्वक पूजते हैं, पहले से ही आज्ञा जाहिर कर दें, तो इन के इशारे मात्र से सभी झगड़े दूर हो सकते हैं । अतएव स्पष्ट हुआ कि इन बन्धुओं ने ऐसा अर्थ केवल मूर्ति के पक्ष में पड़ कर साधुमार्गी समाज से झगड़ने लिए ही किया है। Jain Education International १७६ *** For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy