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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा १६३ **************** ********************* ___ "दूसरे जंबुस्वामी वगेरा शख्सों का जो बयान फरमाया यह चरितानुवाद की बात है, चरितानुवाद उसका नाम है कि जिस तरह एक शख्स ने अपनी जिंदगी तैर किइ हो, विधिवाद उसका नाम है कि जो २ हुक्म तीर्थंकर का है उसको मंजूर करना, विधिवाद आम फिरके पर कायम होता है, चरितानुवाद एक शख्स पर होता है।" .. (७) आपके सम्प्रदाय के प्रसिद्ध विद्वान् पं० बेचरदासजी का मत भी देखिये - ___“जो व्यक्तिओ ना आचरणो उपर थीज आचारो नुं विधान दर्शावातुं होय तो पछी आचारना के विधिना ग्रन्थों ने जुदा रचवानीशी जरूर छे? कथानुयोग थीज बधा विधि विधानो तारवीशकाता होय तो चरण करणानुयोग नो वधारो करवो व्यर्थ जेवो छे, सारा के नरसां आचरणो करनारानी कथाओं उपरथी जो ते ते आचारो नुं वंधारण बंधातु होत तो नीति ना ग्रन्थों के कायदा ग्रन्थोनी जरूर शामाटे पड़े? . मारुं तो एम मानवु छे के ज्यारे आचार ना ग्रन्थो जुदाज रचवामां आव्या छे-आवे छे अने तेमां प्रत्येक नाना मोटा आचारोनुं विधान करवा मां आव्युं छे-आवे छे, ते छतां तेमांजे विधानो नो गंध पण न जणातो होय ते विधान ना समर्थन माटे आपणे कथाओं ना ओठांलइए के कोई ना उदाहरणो आपीए ते बाबत ने हुँ तमस्तरण सिवाय बीजा शब्द थी कही शकतो नथी।" (जैन साहित्य मां विकार थवाथी थयेली हानि पृ० १२७) मित्र ज्ञानसुंदरजी! उक्त सात प्रमाण तो आप ही की मूर्ति पूजक समाज के दिये हैं अब एक प्रमाण दिगम्बर सम्प्रदाय का भी देखिये, पं० परमेष्ठीदासजी न्यायतीर्थ लिखते हैं कि - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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