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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा ************************ Jain Education International ( २ ) इसी ज्ञाता धर्मकथा सूत्र के ८ वें अध्ययन में भगवती मल्लिकुमारी के विषय में लिखा कि वे स्नान कर यावत् बहुत खोजी के साथ कुंभराजा के समीप आई यहाँ भी यावत् शब्द से बलिकर्म का भी ग्रहण होता है। जिसका अर्थ मूर्ति पूजा किसी भी सूरत में नहीं हो सकता, क्योंकि अर्हन् प्रभु गृहस्थावस्था में रहने पर भी न तो किसी देव को नमस्कार करते हैं और न किसी मूर्ति की पूजा ही करते हैं। अतएव इसका मूर्ति पूजा अर्थ असत्य ही ठहरा। (३) उक्तः सूत्र के १६ वें अध्ययन में द्रोपदी के विषय में भी ऐसा ही पाठ है और साथ ही यह लिखा कि द्रोपदी मज्जन घर में गई वहाँ स्नानादि कर वस्त्र पहिने, फिर वहाँ से जिनघर गई और मूर्ति पूजा की। यहाँ द्रोपदी ने स्नान बलिकर्म पहिले व मूर्ति पूजा बाद में की। इस पर से भी बिलकुल स्पष्ट हो गया कि स्नानगृह (गुसलखाने) में द्रोपदी ने स्नान विशेष ही किया था, मूर्ति पूजा नहीं। क्योंकि स्नानगृह कोई मन्दिर या मूर्ति का स्थान तो था ही नहीं और द्रोपदी ने तो स्नान बलिकर्म करने के बाद वस्त्र पहिने और फिर वहां से पूजा करने गई । १२६ ***** श्री सुन्दरजी द्रोपदी के विषय में यह युक्ति लगाते हैं कि यहाँ " कयबलिकम्मा" से मतलब - “घरदेरासर की पूजा करने से है" पर यह कथन भी मिथ्या है क्योंकि यहाँ "घर देरासर" का तो कोई जिक्र ही नहीं है। क्या मूर्ति पूजक लोग गुसलखाने में ही "घर देरासर" रखते हैं? क्योंकि द्रोपदी ने मज्जन घर में प्रवेश करने के बाद स्नान बलिकर्म किया और वस्त्र पहिने फिर बाद में मज्जन घर से निकली। इससे तो इनके हिसाब से गुसलखाने में ही मन्दिर होना चाहिए? क्या कुतर्कों का भी कुछ ठिकाना है? (४) रायपसेणइय सुत में केशीश्रमण मुनिराज ने प्रदेशी राजा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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