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________________ १२८ तुंगका के श्रमणोपासक ************************************** को समझने में सरलता हो इस कारण इसी शब्द विषयक उभय मान्य आगमों के कुछ प्रमाण उद्धृत किये जाते हैं, यथा (१) ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र अ० २ में धन्य सार्थवाह की पत्नी सुभद्रा सन्तान प्राप्ति के लिए नाग देव की पूजा करने को पुष्प, गंध, माला और अलङ्कारादि पूजा सामग्री लेकर अपने घर से निकली, और राजगृही नगरी के मध्य में होती हुई पुष्करणी बावड़ी पर आई, बावड़ी पर आकर पूजन सामग्री को वहीं किनारे पर रख दिया फिर पानी में उतर कर जल मञ्जन किया, स्नान " वलिकर्म" किया। बाद में पानी से गीली साड़ी सहित निकली और पूजा के लिये कमल और पत्र ग्रहण कर बाहर आई। वहाँ से पूजन सामग्री जो वह घर से लाई थी उठाकर नाग घर में गई और नागदेव की पूजा की । उक्त प्रकरण पर दीर्घ दृष्टि डालने से सहज ही मालूम हो सकेगा कि बलिकर्म अर्थ- देव पूजा नहीं है। यदि ऐसा ही होता तो भद्रा पुष्करिणी में प्रवेश करने के पूर्व पूजा सामग्री बाहर रखकर पुष्करिणी में क्यों जाती और जलक्रीड़ा करते हुए बिना पूजन सामग्री के किस प्रकार कर सकती ? यहाँ यह स्पष्ट हो जाता है कि बलिकर्म स्नान विशेष ही है । भद्रा ने पूजन सामग्री बाहर रखकर बावड़ी में जाकर स्नान बलिकर्म किया और बाद में भीगे वस्त्र सहित पुष्प पत्र तोड़े फिर रखी हुई पूजन सामग्री लेकर नाग घर में गई और पूजा की। यहाँ एक बालक भी समझ सकता है कि पूजन और बलिकर्म परस्पर एक नहीं पर भिन्न भिन्न हैं । जैन आगमों में जहाँ स्नान का कथन है वहाँ बहुतसी जगह "हाया कयबलिकम्मा" ये शब्द साथ ही आये हैं, अतएव इस प्रकार आये हुए बलिकर्म का मतलब स्नान की विस्तृत विधि को संक्षिप्त बताना ही है यह प्रमाण स्पष्ट कर देता है कि पूजा और बलिकर्म भिन्न वस्तु है । For Private & Personal Use Only Jain Education International - www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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