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________________ १०० देवाणं-आसायणाए ***************** ******************** कारणों में सम्यग्दृष्टि देवताओं का अवर्णवाद बोलने को दुर्लभ बोधि कहा है किन्तु मूर्ति की आशातना तो वहाँ भी नहीं कही, फिर सुन्दर कथन के थोथेपन में क्या कसर है? और वैसे तो चाहे कोई भी क्यों न हो, निंदा या आशातना तो किसी की भी नहीं करना चाहिए। निंदा बुरी है, इसे सभी बुरी कहते हैं, किन्तु यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि वस्तु स्थिति का सत्य एवं स्पष्ट निर्देश करना निंदा नहीं है। मिथ्या को मिथ्या और झूठ को झूठ कहना निंदा नहीं पर सत्य की रक्षा है। पाप को पाप कहने वाला निंदक नहीं होकर धर्म की रक्षा और धर्म का पालन करने वाला कहा जाता है। अतएव आपका तर्क व्यर्थ ही ठहरता है। जबकि - प्रशंसा और वंदन नमस्कार सद्गुण है तो क्या भैरवभवानी, चण्डी-मण्डी आदि को आप वंदन नमस्कार करेंगे? उनकी प्रशंसा करेंगे? अजैन, बाबा, जोगी, सन्यासी, फ़कीर आदि की प्रशंसा और वन्दन नमस्कार करेंगे क्या वैसे ही वेश्या, शिकारी, जुआरी, कुत्ता, सिंह शूकर आदि को भी वंदनादि करेंगे क्या? नहीं, वहाँ आप स्वयं ऐसा करना अस्वीकार करेंगे। इसी प्रकार जरा सरल बुद्धि से यह भी समझिये कि - यद्यपि निंदा नहीं करना सर्व मान्य सिद्धान्त है, तथापि प्रशंसा तो हर किसी की नहीं की जा सकती, उसी प्रकार जैसे को तैसा कहना कोई निंदा या बुराई नहीं है। ज्ञान सुन्दर जी! कितने ही मूर्तिमति ऐसे भी कुतर्क करते हैं कि"तुम्हारे पिता के चित्र को नमस्कार करो अगर नमस्कार नहीं करो तो पैरों तले रोंदौ" यह कथन भी अज्ञता का है। हमारा तो यह सिद्धान्त है कि हमारे पूज्य पिता श्री हमारे पूज्य हैं। उनका चित्र नहीं, किन्तु मैं आपके कुतर्क के खण्डन में आप ही से पूछता हूँ कि - आप किसी अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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