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________________ __ [13] उद्बोधन मित्र ज्ञानसुन्दर जी! आपके मूर्ति पूजा के प्राचीन इतिहास के उत्तर में पहले 'मुख वस्त्रिका सिद्धि' पेश की गई। अब जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा' प्रथम भाग भेंट करता हूँ। आपकी दोनों पुस्तकों का समुचित खंडन करने में प्रत्येक विषय के लगभग ७ ग्रन्थ और प्रकाशित हो सकते हैं। यदि समय साधन एवं परिस्थिति की अनूकूलता रही तो क्रमशः एक-एक चीज आपके सामने रखता रहूँगा। वास्तव में आपने इन दो पुस्तकों का प्रकाशन कर जैन समाज का महान अपकार किया है और स्थानकवासी समाज के महान उपकारों का इस तरह उल्टा बदला चुका कर कृतज्ञ (?) सिद्ध हुए आपके मिथ्या श्रद्धान और भ्रम पूर्ण प्रचार का अवरोध करने के लिए यह कृति समाज के चरणों में समर्पण करता हूँ और एक प्रति आपके पास भेजकर इससे यथेष्ट लाभ उठाने का आग्रह करता हूँ। आपको चाहिये कि अपने हृदय एवं मस्तिष्क पर बर्फ रख कर ठंडे दिल और दिमाग से इसे पढ़ें और परिणाम से सूचित करें। यदि इस विषय में आप मुझे कुछ पूलना चाहेंगे तो मैं यथा संभव अन्य कार्यों को रोककर पहले आपको उत्तर देने का प्रयत्न करूँगा। शुभेच्छुक लेखक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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