SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा अर्थात् - चमरेन्द्र विचार करता है कि मुझे श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की नेश्राय लेकर शक्रेन्द्र की अत्त्याशातना करने जाना ही श्रेयस्कर है। इसके बाद जब शक्रेन्द्र के भय से सौधर्म देवलोक से भागकर चमरेन्द्र पुनः लौटा तो श्री वीर प्रभु जो उस समय छद्यस्थावस्था में थे, उन्हीं की शरण में आया और उसके पीछे शक्रेन्द्र का वज्र भी और उसके पीछे शक्रेन्द्र अपने फेंके हुए वज्र को यह जानकर पुनः खींचने को दौड़े कि - तं महादुक्खं खलु तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं ६.३ **** अणगाराणय अच्चासायणाए । सूत्र ३१ अर्थात् - मेरे इस कार्य (वज्र फेंकने) से तथा रूप के अरिहंत भगवंत और अनगार की अत्याशातना होगी, यह बड़े दुःख का विषय है। पाठक देखेंगे कि - इन तीनों बातों में मूर्ति का कोई सम्बन्ध ही नहीं है। न तो चमरेन्द्र ने सौधर्म देवलोक में जाते समय मूर्ति की शरण ली, न आया तब मूर्ति के शरण में और न शक्रेन्द्र ने मूर्ति की आशातना मानी, चमरेन्द्र ने जाते समय छद्मस्थ अरिहंत महावीर प्रभु की ही शरण ली थी, आया भी उन्हीं की शरण में और शक्रेन्द्र ने अत्त्याशातना भी अरिहंत भगवंत और अणगार महाराज की ही मानी । फिर मूर्ति का अडङ्गा क्यों बताया जाता है? यदि इनतीनों स्थलों पर शांत चित्त से विचार किया जाय तो यह बात सहज ही समझ में आ सकती है कि इसमें मूर्ति का अडङ्गा लगाने वाले केवल हठाग्रही ही हैं। इसके सिवाय ये लोग इसके पूर्व का एक पाठ यह पेश करते हैं कि - णणत्थ अरिहंते वा, "अरिहंत चेइयाणि वा " अणगारे वा भावियप्पणो । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy