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________________ श्रावक रत्न श्रीमान् वल्लभचन्दजी सा. डागा, जोधपुर के अर्थ सहयोग से अर्द्ध मूल्य में प्रकाशन किया जा रहा है। आदरणीय डागा साहब की उदारता के लिए समाज पूर्ण रूपेण परिचित है। आप संघ की प्रवृत्तियों के लिए हमेशा उदारता से सहयोग प्रदान करने के तत्पर रहते हैं । साहित्य प्रकाशन में सहयोग प्रदान करने में आपकी भावना उत्कृष्ट रहती है। संघ एवं पाठक गण आपके इस सहयोग के लिए बहुत-बहुत आभारी है। आप चिरायु रहे और संघ और समाज को आपका सहयोग प्राप्त होता रहे । [11] प्रस्तुत पुस्तक के पुनः प्रकाशन में हमारा एक मात्र लक्ष्य है कि जिनवाणी रसिक चतुर्विध संघ के सदस्य जिनवाणी के शुद्ध स्वरूप को समझें एवं स्थानकवासी समाज में बढ़ रही विकृतियों के कारण लोगों की श्रद्धा जो डांवाडोल हो रही है वह स्थिर बने ! बावजूद इस प्रकाशन से किसी भी महानुभाव के हृदय को यदि कोई ठेस पहुँचे तो उसके लिए मैं हृदय से क्षमा चाहता हूँ । सैद्धान्तिक मान्यता के अलावा मेरा किसी व्यक्ति विशेष के प्रति कोई वैर विरोध नहीं है। मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झं ण केण ॥ यह दुर्लभ पुस्तक बड़े ही लम्बे अन्तराल के पश्चात् पुनः प्रकाशित की जा रही है । अतएव पाठक बंधुओं से निवेदन है कि वे इसे धरोहर के रूप में अपने पास रखें और समय-समय पर इसका वाचन कर अपनी श्रद्धा को दृढ़ करे। इसी शुभ भावना के साथ ! ब्यावर (राज.) दिनांक १-११-२००२ Jain Education International संघ सेवक नेमीचन्द बांठिया अ. भा. सु. जैन सं. र. संघ, जोधपुर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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