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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा ****本学学术交学求学学****李*********安********年****空** मान्यता का खण्डन करते हुए “प्रतिमा शतक" के २० वें श्लोक में लिखते हैं कि - सावधं व्यवहारतोपि भगवान् साक्षात् किलानादिशत्। बल्यादि प्रतिमार्चनादि गुणकृत् मौनेन संमन्यते॥ अर्थ - श्री वर्द्धमान स्वामी बलिदान अने प्रतिमार्चन विगेरे व्यवहार थी सावध छे तेथी तेने साक्षात् आदेश नहीं करता ते गुणकारी छे, एम मौन धारण करी प्रवर्ताव छ। (पृ० ३७) इस तरह प्रतिमा पूजन भगवान् महावीर कथित नहीं होना स्वीकार करते हैं, और दूसरी तरफ साहसी सुन्दरजी महाराज बिना ही किसी प्रमाण के भगवान् को मूर्ति पूजा के समर्थक लिख रहे हैं। यह सरासर मिथ्यावाद, मत मोह में मस्त हृदय का है। अतएव अधिक उद्योग की आवश्यकता नहीं। पाठक स्वयं समझ लें। (१२) चम्पा नगरी और अरिहन्त चैत्य ___ मिस्टर ज्ञान सुन्दरजी ने अपनी पुस्तक “मूर्ति पूजा का प्राचीन इतिहास' के चौथे प्रकरण पृ० ६९ में लिखा है कि - “जहाँ जैनों की बस्ती हो वहाँ आत्म-कल्याण का साधन, जैन मन्दिर मूर्तियों का होना स्वाभाविक है। जैनागमों में नगरों का वर्णन किया वहाँ भी इस बात को अच्छी तरह से बतलाया है कि नगरों के मुहल्ले-मुहल्ले में अरिहंतों के मन्दिर हैं, हम यहाँ पर श्री उत्पातिक सूत्र में चम्पा नगरी के वर्णन में आये हुए अरिहंतों के मंदिरों का उल्लेख कर देते हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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