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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
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सरखा पच्चक्खाण ने करवा पण भाग्यशाली थइश क्या होता तेपण आवती चौवीसी मां जे जिनेश्वर नी पदवी थी अलंकृत थशे ते सर्व प्रभाव शासन नी प्रभावना नोज छे । "
इसमें शासन प्रभावना से तीर्थंकर गोत्र पाना स्वीकार किया गया है जो कि यज्ञ याग रूप हिंसात्मक समय में जैनधर्म के अहिंसा सिद्धान्त की अमारी प्रवर्तन से भारी प्रभावना करना है। यह प्रभावना किसी भी तरह कम नहीं है, आज भी पर्युषण पर्वाधिराज तथा महावीर जयंती आदि पर्वों पर कई शहरों में तथा देशी राज्यों में पलतियें (अगते) रखवाकर अमारी प्रवर्तन द्वारा शासन प्रभावना की जाती है। बस श्रेणिक महाराजा की सूत्रोल्लिखित अहिंसा प्रवर्तन रूप शासन प्रभावना ही यदि तीर्थंकर गोत्र का अधिक कारण है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, किन्तु मूर्ति पूजा तो शासन प्रभावना का कारण नहीं, अपितु यह अन्ध श्रद्धा एवं पाखण्ड प्रभावना का कारण होकर प्रभु विरोधिनी भक्ति होने से शासन की अवलेहना कराने वाली है, इसलिए आपका मूर्ति पूजा से तीर्थंकर गोत्र उपार्जन करने का कथन भी सत्य से सर्वथा दूर है ।
सुन्दरजी कहते हैं कि भगवान् ने इस कार्य का विरोध नहीं किया, इसलिए यह पाया जाता है कि भगवान् महावीर मूर्ति पूजा से सहमत थे" जबकि यह कथन ही झूठ है, तब यह प्रश्न ही कहाँ रह गया कि भगवान् इसका विरोध करें ? यदि कोई व्यक्ति नियम विरुद्ध कार्य ही नहीं करें, तो उसे उसके वृद्धजन क्यों टोंकने लगे ? बस इसी तरह समझ लो कि जब श्रेणिक मूर्ति पूजक ही नहीं, तो फिर भगवान् मूर्ति पूजा से उसे रोकें किस प्रकार ?
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