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________________ बारह प्रकार का तप । ( ७४१) का छेद करके अलेशी बन । चार लक्षण-१ जीव को शिव रुप-शरीर से भिन्न समझे २ सर्व संग को त्यागे ३ चपलता पूर्वक उपसर्ग सहे ४ मोह रहित वर्ने। चार अवलंबन-१ पूर्ण क्षमा २ पूर्ण निर्लेभिता ३ पूर्ण सरलता ४पूर्ण निरभिमानता चार अनुप्रेक्षा-२ प्राणातिगत आदि पाप के कारण सोचे २ पुगल की अशुभता चिंतये ३ अनन्त पुद्गल परावर्तन का चितवन करे ४ द्रव्य के बदलने वाले परिणाम चिंतवे । ६ कायोत्सर्ग तप के दो भेद-१ द्रव्य कायोत्सर्ग २ भाव कायोत्सर्ग । द्रव्य कायोत्सर्ग के चार भेद-१ शरीर के ममत्व का त्याग करे २-सम्प्रदाय के ममत्व का त्यागकरे ३ वस्त्र पात्रादि उपकरण का ममत्व त्यागे ४ श्राहार पानी आदि पदार्थों का ममत्व त्यागे । भाव कायोत्सगंके ३ भेद-१ कषाय कायोत्सर्ग (४ कपाय का त्याग करे ) २ संसार कायोत्सर्ग ( ४ गति में जाने के कारण बन्ध करना) ३ कमें कायोत्सर्ग ( ८ कर्म बन्ध के कारण जान कर त्याग करे) ___ इस प्रकार कुल बारह प्रकार के तप के सर्व ३५४ भेद उववाई सूत्र से जानना । ॥ इति बारह तप का विस्तार ॥ इति श्री थोकड़ा संग्रह समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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