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________________ ( ७४०) थोकडा संग्रह। रौद्र ध्यान के चार भेद-हिंसा में, असत्य में, चोरी में, और भोगोपभोग में आनन्द माने । चार लक्षण १ जीव हिंसा का २ असत्य का ३ चोरी का थोड़ा बहुत दोष लगावे ४ मृत्यु-शय्या पर भी पाप का पश्चाताप नहीं करे। धर्म ध्यान के भेद-चार पाये-१ जिनाज्ञा का विचार २ रागद्वेष उत्पत्ति के कारणों का विचार ३ कर्म विपाक का विचार ४ लोक संस्थान का विचार । चार रुचि-१ तीर्थकर की आज्ञा आराधन करने की रुचि २ शास्त्र श्रवण की रुचि ३ तत्वार्थ श्रद्धा की रुचि ४ सूत्र सिद्धान्त पढ़ने की रुचि । चार अवलम्बन-१ सूत्र सिद्धान्त की वाचनालेना व देना २ प्रश्नादि पूछना ३ पढ़े हुवे ज्ञान को फेरना ४ धर्म कथा करना चार अनुप्रेक्षा-१ पुद्गल को अनित्य नाशवन्त जाने २ संसार में कोई किसी को शरण देने वाला नहीं ऐसा चितवे ४ में अकेला हूं ऐसा सांचे ४ संसार स्वरुप विचारे एवं धर्म ध्यान के १६ भेद हुवे । शुक्ल ध्यान के १६ भेद-१ पदार्थों में द्रव्य गुण पर्याय का विविध प्रकार से विचार करे २ एक पुद्गल का उन्मादादि विचार बदले नहीं ३ सूक्ष्म ईविहि क्रिया लागे परन्तु अपायी होने से बन्ध न पड़े ४ सर्व क्रिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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