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________________ खताणु-वाई। ६ बोल ज्योतिषी के ( ३ देवके, ३ देवी के ऊपर वत् ) सर्व से कम ऊर्ध्व लोक में उनसे ऊर्ध तीर्छ लोक में असं० गुणा उनसे तीन लोक में संख्यात गुणा उनसे अधो-तीर्थ लोक में असंख्य त गुणा उनसे अधो लोक में संख्यात गुणः, उनसे ती लोक में असंख्यात गुणा ६ बोल-वैमानिक (३ देवी के ऊार वत् ) केसर्व से कम ऊर्ध्व-ती लोक में उनसे तीन लोक में संख्यात गुणा उनसे अधो-ती लोक में संख्यात गुण उनसे अधो लोक में संख्यात गुणा उनसे ऊधे लोक में असंख्यात गुणा। ६ बोल तीन विकलेन्द्रिय के ( ३ पर्याप्ता, ३ अपर्याप्ता ) सर्व से कम ऊर्ध्व लोक में उनसे ऊर्ध्व ती लोक में असंख्यात गुणा उनसे त छ लोक में असंख्यात गुणा उसने अधो तीर्छ लोक में असंख्यात गुणा उनसे अधो लोक में संख्यात गुणा उनसे ती, लोक म सख्यात गुणा। __ ५ बोल ( समुच्चय पंचेन्द्रिय, समु० अपर्याप्ता समुत्रस, त्रस के पर्या० अपर्याप्ता) सर्व से कम तीन लोक में उनसे ऊर्ध-ती लोक-में संख्यात गुण। उनसे अधोती लोक में संख्यात गुणा उनसे ऊध लोक में संख्यात गुणा उनसे अधो लोक म संख्यात गुणा उनसे ती लोक में असंख्यात गुणा। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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