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ऋत संचय |
ऋत संचय
( श्री भगवती सूत्र, शतक २०, उद्देशा १० ) (१) ऋत संचय - जो एक समय में दो जीवों से संख्याता जीव उत्पन्न होते हैं ।
( ७०६ )
113,
(२) क्रत संचय - जो एक समय में असंख्याता अनन्ता जीव उत्पन्न होते हैं
(३) अवक्तव्य संचय - एक समय में एक जीव उत्पन्न होता है ।
१ नारकी (७), १० भवन पति, ३ विकलेन्द्रिय, १ तिर्यच पंचेन्द्रिय, १ मनुष्य, १ व्यंतर, १ ज्योतिषी और १ वैमानिक एवं १६ दएडक में तीनों ही प्रकार के संचय |
पृथ्वी काय आदि ५ स्थावर में अक्रत संचय होता है। शेष दो संचय नहीं होते कारण समय समय असंख्य जीव उपजते हैं | यदि किसी स्थान पर १-२-३ आदि संख्याता कहे हों तो वो परकायापेक्षा समझना ।
सिद्ध ऋत संचय तथा अवक्तव्य संचय है, अक्रत संचय नहीं ।
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अल्प बहुत्व नारकी में सर्व से कम वक्तव्य संचय उनसे ऋत संचय संख्यात गुणा उनसे अक्रत संवय असंख्यात गुणा एवं १६ दण्डक का अल्प बहुल जानना
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