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________________ छ काय के बोल । (६) प्राकार का है। इस में चार लाख विमान हैं। यहां से असंख्यात योजन का करोड़ा करोड़ प्रमाणे ऊंचा जाने पर छठा लांतक देवलोक आता है । जो पूर्ण चन्द्रमा के आकार का है । इस में ५० हजार विमान हैं । यहां से असंख्यात योजन का करोड़ा करोड़ प्रमाणे ऊंचा जाने पर सातवां महा शुक्र देवलोक आता है। जो पूर्ण चन्द्रमा के आकार का है । इस में ४० हजार विमान हैं । यहां से असंख्यात योजन के करोड़ा करोड़ प्रमाणे ऊंचा जाने पर आठवां सहसार देवलोक आता है । जो पूर्ण चन्द्रमा के श्राकार का है। इस में ६ हजार विमान हैं। यहां से असंख्यात योजन के करोड़ा करोड़ प्रमाणे ऊंचा जाने पर नौवां आनत और दशां प्राणत ये दो देवलोक आते हैं। जो लगड़ाकार हैं । व एक एक अर्ध चन्द्रमा के श्राकार का है । दोनों मिल कर पूर्ण चन्द्रमा के समान हैं । दोनों देवलोक में मिल कर ४०० विमान हैं। यहां से असंख्यात योजन के करोड़ा करोड़ प्रमाणे ऊंचा जाने पर इग्यारवां पारण्य और बारहवां अच्यूत देवलोक आते हैं। जो लगडाकार हैं। व एक एक अर्ध चन्द्रमा के आकार का है, दोनों मिल कर पूर्ण चन्द्रमा के समान हैं । दोनों देव लोक में मिलकर ३०० विमान हैं। एवं बारह देव लोक के सर्व मिला कर ८४, ६६, ७०० विमान हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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