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________________ ( ५८) थोकड! संग्रह। उत्पन्न हुवे हैं । वो कैसे ? तीर्थ कर, केवली, साधु, साध्वी के अपवाद बोलने से ये किल्बिषी देव हुवे हैं। बारह देवलोक-१ सुधर्मा देवलोक २ इशान देवलोक ३ सनंत कुमार देवलोक ४ महेन्द्र देवलोक ५ ब्रह्म देवलोक ६ लांतक देवलोक ७ महाशुक्र देवलोक ८ सहसार देवलोक ६ आणत देवलोक १० प्राणा देवलोक ११ आरण्य देवलोक १२ अच्यूत देवलोक। . बारह देवलोक कितने ऊंचे, किस आकार के, व इन के कितने कितने विमान हैं, इसका विवेचन ज्योतिषी चक्र के ऊपर असंख्यात योजन की करोड़ा करोड़ प्रमाण ऊंचा जाने पर पहेला सुधर्मा व दुसरा इशान ये दो देवलोक आते हैं जो लगड़ाकार हैं। व एक एक अर्ध चन्द्रमा के आकार ( समान ) है और दोनों मिल कर पूर्ण चन्द्रमा के आकार ( समान ) हैं। पहले में ३२ लाख और दूसरे में २८ लाख विमान हैं। यहां से असंखात योजन की करोड़ा करोड़ प्रमाणे ऊंचे जाने पर तीसरा सनंत कुमार व चौथा महेन्द्र ये दो देवलोक आते हैं । जो लगड़ा ( ढांचा ) के आकार हैं। एक एक अर्ध चन्द्रमा के आकार का है। दोनों मिल कर पूर्ण चन्द्रमा के आकार (समान ) हैं। तीसरे में बारह लाख व चौथे में आठ लाख विमान हैं। यहां से असंख्यात योजन का करोड़ा करोड़ प्रमाणे ऊंचा जाने पर पांचवां ब्रह्म देवलोक आता है । जो पूर्ण चन्द्रमा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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