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भाषा-पद।
(८) स्थिर-अस्थिर-जीव जो पुद्गल भाषा रूप से लेते हैं वे स्थिर हैं या मस्थिा ? आत्मा के समीप रहे हुवे स्थिर पुद्गलों को ही भाषा रूप से ग्रहण किये जाते हैं । द्रव्य क्षेत्र, काल भाव अपेक्षा चार प्रकार से ग्रहण होता है। १ द्रव्य से अनन्त प्रदेशी द्रव्य को भाषा रूप से
ग्रहण करते हैं। २ क्षेत्र से असंख्यात आकाश प्रदेश अवगाहे ऐसे
अनन्त प्रदेशी द्रव्य को भाषा रूप में लेते हैं। ३ काल से १-२-३-४-५-६-७-८-६-१० संख्याता और असंख्याता समय की एवं १२ बोल की स्थिति वाले पुद्गलों को भाषा रूप से लेते हैं।
४ भाव से-५ वर्ण, २ गन्ध, ५ रस, ४ स्पर्श वाले पुद्गलों को भाषा रूप में ग्रहण करते हैं। यह इस प्रकार एकक वर्ण, एकेक रस, और एकेक स्पर्श के अनन्त गुणा अधिक के १३ भेद करना अर्थात वर्ण के ५+१३ =६५, गन्ध के २४१३२६, रस के ५४१३-६५ और स्पर्श के ४४१३=५२ बोल हुवे ॥ __.. इन में द्रव्य का १ बोल, क्षेत्र का १ और काल के १२ बोल मिलाने से २२२ वोल हुवे ये २२२ बोल वाले पुद्गल द्रव्य भाषा रूप से ग्रहण होते हैं-(१) स्पर्श किये हुवे (२) आत्म अवगाहन किये हुवे (३)अनन्तर
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