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________________ ( ६६१ ) । १६ गौणता - मुख्यता अन्य विषयों को छोड कर आवश्यक वस्तुओं का व्याख्यान करना सो मुख्यता और जो वस्तु गुप्त रूप से प्रधानता से रही हुई हो वो गौणता । जैसे--ज्ञान से मोक्ष होता। ऐसा कहने में ज्ञान की मुमुख्यता रही और दर्शन, चारित्र तपादि की गौणता रही । १७ उत्सर्ग-अपबाद - उत्सर्ग यह उत्कृष्ट मार्ग है और अपबाद उसका रक्षक है । उत्सर्ग मार्गे से पतित अपवाद का अवलम्बन लेकर फिर से उत्सर्ग ( उत्कृष्ट ) मार्ग पर पहुँच सकता है । जैसे सदा ६ गुसि से रहना यह उत्सर्ग मार्ग है और ४ समिति यह गुप्ति के रक्षक--सहाइक अपवाद मार्ग हैं। जिन कल्प उत्कृष्ट मार्ग है, स्थविर कल्प अपवाद मार्ग | इत्यादि षट् द्रव्य में भी जानना चाहिये । १८ तीन यात्मा बहिरात्मा, अन्तरात्मा और प्रमाण - नय । · परमात्मा । बहिरात्मा - शरीर, धन, धान्यादि समृद्धि, कुटुम्ब परिवार आदि में तल्लीन होवे सो मिथ्यात्वी । अन्तरात्मा - बाह्य वस्तु को अन्य समझ कर उसे त्यागना चाहे व त्यागे वो अन्तरात्मा ४ से १३ गुण स्थान वाले । परमात्मा - सर्व कार्य जिसके सिद्ध हो गये हों व कर्म मुक्त हो कर जो स्व-स्वरूप में लीन है वो सिद्ध परमात्मा । १६ चार ध्यान - १ पदस्थ - पंच परमेष्टि के गुणों का ध्यान करना सो पदस्थ ध्यान । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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