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प्रमाण-नय।
(६८५)
न्द्र देवेन्द्र, पुरेन्द्र, सूचीपति इन सबों को एक माने ।
६ समभिरुढ नय-शब्द के भिन्न २ अर्थों को माने जैसे-शुक्र सिंहासन पर बैठे हुवे को ही शक्रन्द्र माने एक अंश न्यून होवे उसे भी वस्तु मान लेये; विशेष भाव निक्षेप और वर्तमान काल का ही माने. ____७ एवं भूत नय-एक अंश भी कम नहीं होवे उसे वस्तु माने । शेष को अवस्तु माने, वर्तमान काल और भाव निक्षेप को ही माने ।
जो नय से ही एकान्त पन ग्रहण करे उसे नयाभास (मिथ्यात्वी ) कहते हैं। जैसे ७ अन्धों ने १ हाथी को दंतुशल, सूएड, कान, पेट, पाँव, पूंछ और कुंभस्थल माना वे कहने लगे कि हाथी मूल समान, हडू मान समान, सूप समान कोठी समान, स्तम्भ समान, चामर समान तथा घट समान है । सम दृष्टि तो सबों को एकान्त वादी समझ कर मिथ्या मानेगा परन्तु सर्व नयों को मिलाने पर सत्य स्वरूप बनता है अतः वही समदृष्टि कहलाता है।
२ निक्षेप चार-एकेक वस्तु के जैसे अनंत नय हो सक्ते हैं वैसे ही निक्षेप भी अनंत हो सकते हैं परंतु यहां मुख्य चार निक्षेप कहे जाते हैं । निक्षप-सामान्य रूप प्रत्यक्ष ज्ञान है वस्तु तत्व ग्रहण में अति आवश्यक है इसके चार भेद
१ ना निक्षेप-जीव व अजीव का अर्थ शून्य, य. थार्थ तथा अयथार्थ नाम रखना ।
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