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________________ (६८२) थोकडा संग्रह। प्रमाण-नय श्री अनुयोग द्वार-सूत्र तथा अन्य ग्रन्थों के आधार पर २४ द्वार कहे जाते हैं। (१) सात नय (२) चार निक्षप (३) द्रव्य गुण पोय (४) द्रव्य, क्षत्र, काल भाव (५) द्रव्य-भाव (६) कार्य कारण (७) निश्चय-व्यवहार (८) उपादान-निमित्त (६) चार प्रमाण (१०) सामान्य-विशेष (११) गुण-गुणी (१२) ज्ञय-ज्ञान, ज्ञानी (१३) उपनवा, विहनवा, धुवंका (१४) अधिय-आधार (१५) आविर्भाव-निरोभाव (१६) गौणता-मुख्यता (१७) उसर्ग-अपवाद (१८) नीन आत्मा (१६) चार ध्यान (२०) चार अनुयोग (२१) तीन जागृति (२२) नव व्याख्या (२३ आठ पक्ष (२४) सप्त-भंगी । १ नय-(पदार्थ के अंश को ग्रहण करना ) प्रत्येक पदार्थ के अनेक धर्म होते हैं और इनमें से हर एक को ग्रहण करने से एकेक नय गिना जाता है-इस प्रकार अनेक नय हो सकते हैं परन्तु यहां संक्षेप से ७ नय कहे जाते हैं। नय के मुख्य दो भेद है-द्रव्यास्तिक ( द्रव्य को ग्रहण करना) और पर्यायास्तिक (पर्याय को ग्रहण करना) द्रव्यास्तिक नय के १० भेद-१ नित्य २ एक ३ सत् ४ वक्तव्य ५ अशुद्ध ६ अन्वय ७ परम ८ शुद्ध ६ सत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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