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________________ (६७०) थोकडा संग्रह। २४ ऋद्ध द्वार-सवे से कम ऋद्धि तारा की उससे उत्तरोत्तर महा ऋद्धि । २५ वैक्रिय द्वार-वैक्रिय रूप से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप भरते हैं सख्याता जम्बू द्वीप भरे की शक्ति चंद्र सूर्य, सामानिक और देवियों में भी है। २६ अवधि द्वार-तीर्थी ज० उ० संख्यात द्वीप समुद्र ऊंचा अपनी धजा पताका तक और नीचे पहली नरक तक जाने-देखे। २७ परिचारणा-पांचों ही मनुष्य क्त) प्रकार से भोग करे। २८ सिद्ध द्वार-ज्योतिषः देव से निकल कर १ समय में १० जीव और ज्योतिषी देवियों से निकल कर १ समय में २० जीव मोक्ष जा सक्ते हैं। २६ भव द्वार-भव करे तो ज० १२.३ उ० अनन्ता भव करे। ३० अल्प बहुत्व द्वार-सर्वे से कम चंद्र सूर्य, उन से नक्षत्र, उन से ग्रह और उन से तारे (देव) संख्यात संख्यात गुणा है। ३१ उत्पन्न द्वार-ज्योतिषी देव रूप से यह जीव अनन्त अनन्त वार उत्पन्न हुवा परन्तु वीतराग आज्ञा का आराधन किये विना आत्मिक सुख नहीं प्राप्त कर सका । ॥ इति ज्योतिषी व विस्तार सम्पूर्ण ॥ mmmmmmm Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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