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________________ ज्योतिषी देव विस्तार । (६६७ ) अन्तर ३५३० योजन का है । सूर्य के प्रत्येक मंडल से दूसरे मंडल का अन्तर दो २ योजन का है। १२ गति द्वार--सूर्य की गति कर संक्राति को ( आषाढी पूर्णिमा ) १ मुहूर्त में ५२५१, क्षेत्र तथा मकर संक्राति ( पोष पूर्णिमा ) को १ मुहूर्त में ५३०५४, क्षत्र है । चन्द्र की गति कर्क संक्राति को १ मु० में ५०७३,३७३, और मकर संक्राति को ५१२५ ६६६० है । ___ १३ ताप क्षेत्र--कर्क संक्राति को ताप क्षेत्र ९७५२६२६, और ऊगता सूर्य ४७२०३ २४ योजन दूर से दृष्टि गोचर होता है। मकर संक्राति को ताप क्षेत्र ६३६६३ र उगता सूर्य ३१८३१ ६ यो० दूर से दृष्टि गोचर होता है। १४ अन्तर द्वार- अन्तर दो प्रकार का पड़े १ व्याघात-किसी पदार्थ का बीच में आजाने से और २ नियाघात-बिना किसी के बीच में आये व्याघात अपेक्षा ज. २६६ योजन का अन्तर कारण-निषिध नीलवन्त पर्वत का शिखर २५० यो० है और यहां से ८-योजन दर ज्यो० चलते हैं अर्थात् २५०x+८=२६६ उ० १२२४२ योजन कारण-मेरु शिखर १० हजार यो० का है और इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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