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________________ थोकडा संग्रह। Pram our - - ग्रह वि० की, १ गाउ नक्षत्र वि० की और ०॥ भाउ तारा वि० की चौड़ाई है। जाड़ाई इस से आधी २ जानना सर्व विमान स्फटिक रत्न मय हैं। १० विमान वाहक-ज्योतिषी विमान आकाश के आधार पर स्थित रह सकते हैं परन्तु स्वामी के बहुमान के लिये जो देव विमान उठाकर फिरते हैं उनकी संख्या-- चन्द्र सूर्य के विमान के १६-१६ हजार देव, ग्रह के विमान के ८-८ हजार देव, नक्षत्र विमान के ४-४ हजार और तारा विमान के २-२ हजार देव वाहक हैं। ये समान २ संख्या में चारों ही दिशाओं में मुहँ करके-पूर्व में सिंह रूप से, पश्चिम में वृषभ रूप से, उत्तर में अश्व रूप से, और दक्षिण में हस्ति रूप से, देव रहते हैं। ११ मांडला द्वार-चन्द्र सूर्य आदि की प्रदक्षिणा ( चारों और पकर लगाना )- दक्षिणायन से उत्तरायण जाने के मार्ग को 'मांडला' कहते हैं। मांडले का क्षेत्र ५१० यो० का है । जिसमें ३३० यो० लवण समद्र में और १०० यो जंबूदीप में है। चन्द्र के १५ मांडले हैं। जिनमें से १० लवण में, ५ जंबू द्वीप में हैं । सूर्य के १८४ मांडलों में से ११६ लवण में और ६५ जंबू द्वीप में हैं । ग्रह के ८ मांडलों में से ६ लवण में और २ जंबू द्वीप में हैं। जंबू द्वीप में ज्योतिपी के मांडले हैं वे निषिध और नील वन्त पर्वत के ऊपर हैं । चन्द्र के मांडलों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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