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________________ ( ६५८) थोकडा संग्रह | १७ परिचरण द्वार - ( मैथुन ) पांच प्रकार का - मन, रूप शब्द, स्पर्श और काय परिचारण ( मनुष्य वत् देवी के साथ भोग ) १८ वैक्रिय करे तो चमरेन्द्र देव - देवियों से समस्त जंबूद्वीप भरे, असंख्य द्वीप भरने की शक्ति है परन्तु भरे नहीं । बलेन्द्र देव - देवियों से साधिक जंबूद्वीप भरे, असंख्य भरने की शक्ति है परन्तु भरे नहीं । १८ इन्द्र देव - देवियों से समस्त जंबूद्वीप भरे संख्यात द्वीप भरने की शक्ति है परन्तु भरे नहीं । लोकपाल देवियों की शक्ति संख्यात द्वीप भरने की शेप सबों की सामानिक, त्रयस्त्रिश देव-देवी और लोकपाल देव की वैक्रिय शक्ति अपने इन्द्रवत्, वैक्रिय का काल १५ दिन का जानना | १६ अवधि द्वार - असुर कुमार देव ज० २५ यो० उ० ऊर्ध्व सौधर्म देवलोक, नीचे तीसरी नरक, तीर्च्छा असंख्य द्वीप समुद्र तक जाने व देखे शेष ६ जाति के भवनपति देव ज० २५ यो० उ० ऊंचा ज्योतिषी के तले तक, नीचे पहेली नरक, तीच्र्च्छा संख्यांत द्वीप समुद्र तक जाने - देखे | २० सिद्ध द्वार - भवनपति में से निकले हुवे देव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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