________________
आहार के १०६ दोष ।
। ६२७)
[३५] निक्खित्ते-सचित्त वस्तु पर अचित्त आहार
रखा होवे। [३६] पहिये--अचित्त वस्तु सचित्त से ढंकी होवे वो। [३७] मिसीये-सचित्त-अचित्त वस्तु मिली होवे । [[३८] अपरिणिये पूरा अचित्त आहार जो न हुवा हो [३६] सहारिये-एक बर्तन से दूसरे बर्तन (नहीं वर
राया हुवा ) में लेकर दिया हुवा।। [४०] दायगो--अंगोपांग से हीन ऐसे गृहस्थों से
लेवे कि जिन्हें चलने फिरने से दुःख होता
होवे। [४१] लीत्त--तुरुत के लीपे हुवे आंगन पर से लिया
हुवा। [४२] छंडिये--पहोरावने के समय वस्तु नीचे गिरती
टपकती हो । आवश्यक सूत्र में बताये हुवे ५ दोष । [१] गृहस्थों के दरवाजे आदि खुला कर लेवे तो। [२] गौ, कुत्ते आदि के लिए रक्खी हुई रोटी लेवे तो। [३] देवी देवता के नैवेद्य व बलिदान निमित बनी
हुई वस्तु लेवे तो। [४] बिना देखी चीज-वस्तु लेवे तो। [१] प्रथम निरस आहार पर्याप्त पापा हुवा हो तो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org