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________________ छकाय के बोल | ( ५१ ) हैं एवं पन्द्रह क्षेत्र हुवे जिनमें असी ( हथियार से ) मसी ( लेखनादि व्यापार से ) और कृषि (खेती से ) उपजीविका करने वाले हैं । इन क्षेत्रों में विवाह आदि कर्म होते हैं व मोक्ष मार्ग का साधन भी है । २ तीस अकर्म भूमि मनुष्य के क्षेत्र १ हेम वय १ हिरण्य वय १ हरि वास १ रम्यक वास १ देव कुरु १ उत्तर कुरु ये ६ क्षेत्र एक लाख योजन वाले जम्बु द्वीप में है इसके बाहर दो लाख योजन का लवण समुद्र है जिसके बाहर चार लाख योजन का धातकी खण्ड है जिसमें २ हेमवय २ हिरण्य वय २ हरिवास २ रम्यक वास २ देव कुरु २ उत्तर कुरु ये १२ क्षेत्र हैं इसके बारह आठ लाख योजन का कालोदधि समुद्र है इसके बाहर आठ लाख योजन का अर्थ पुष्कर द्वीप है जिसमें २ हेमवय २ हिरण्य वय २ हरिवास २ रम्यक वास २ देव कुरु २ उत्तर कुरु ये १२ क्षेत्र हैं एवं तीस क्षेत्र अकर्म भूमि के हैं जिनमें न खेती आदि होती है, न विवाह आदि कर्म होते हैं और न वहां कोई मोक्ष मार्ग का ही साधन है । ३ छप्पन अन्तर द्वीप के क्षेत्र मेरु पर्वत के उत्तर में भरत क्षेत्र की सीमा पर १०० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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