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________________ अष्ट प्रवचन । (६६१७ छेद कारी, भेदकारी, अधार्मिक, मृषा, सावद्य.निश्चयकारी) नहीं बोले क्षेत्र से गस्ते चलते न बोले काल से १ पहेर रात्रि बीतने पर जोर से नहीं बोले भाव से राग द्वेष युक्त भाषा न बोले । ३ एषणा समिति के ४ भेद-द्रव्य क्षेत्र,काल भाव द्रव्य से ४२ तथा ६६ दोष टाल कर निर्दोष अाहार, पानी वस्त्र, पात्र, मकानादेि याचे मांगे क्षेत्र से २ गाउ (कोस) उपरान्त ले जाकर आहार पानी नहीं भोगे, काल से पहले पहर का श्राहार पानी चोथे पहर में न भोगवे भाव से मांडले के व दोष (संयोग. अंगाल,धूम, परिमाण, कारण) दाल कर अनासक्तता से भोगवे । ४ अादान भएडमत्त तिखेवणीया समितिमुनियों के उपकरण ये हैं-१ रजोहरण २ मुँहपत्ति १ चोल पट्टा ( ५ हाथ ) ३ चादर ( पछेड़ी) साध्वी ४ पछेडी रक्खे, काष्ट तुम्बी तथा मिट्टी के पात्र, १ गुच्छा, १ आसन १ संस्तारक (२॥ हाथ लम्बा बिछाने का कपड़ा) तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्र वृद्धि निमित्त आवश्यक वस्तुएं। (१) द्रव्य से ऊपर कहे हुवे उपकरण यत्ना से लेवे, रक्खें तथा वारे ( काम में लेवे ) (२) क्षेत्र से व्यवस्थित रक्खे जहां तहां विखरे हुवे नहीं रक्खे। ___(३) काल से दोनों समय (१ से और चौथ पहर म) पडिलेहन तथा पूजन करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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