________________
र ६०६)
थोकडा संग्रह।
साधु परिहार विशुद्ध चारित्र ले । जिनमें से ४ मुनि ६ माह तक तप करे, ४ मुनि वैयावच्च करे और १ मुाने व्याख्यान देवे । दूसरे ६ माह में ४ वैयावच्ची नि तप करे, ४ तप करने वाले वैयावच्च करे और १ मुनि व्याख्यान देवे । तीसरे ६ माह में १ व्याख्या देने वाला तप करे, १ व्याख्यान देवे और ७ मुनि वैयावच्च करे । तपश्चर्या उनाले में एकान्तर उपवास, शियाले हठ छर पारणा, चौमासे अठम २ पारणा करे एवं १८ माह तप कर के जिन कल्पी होवे अथवा पुनः गुरुकुल वास स्वी. कारे।
सूक्ष्म संपराय चारित्री के २ भेद-संवलेश परिणाम-उपशम श्रेणी से गिरने वाले (२, विशुद्ध परि णाम-क्षपक श्रेणी पर चढने वाले।
५ यथाख्यात चारित्री के २ भेद-(१) उपशान्त वीतरागी ११ वें गुण स्थान वाले (२) क्षीण वीतरागी के २ भेद छमस्थ और केवली ( सयोगी तथा अयोगी)। ___२ वेद द्वार-सामा०, छेदोप० वाले सवेदी ( ३ वेद) तथा अवेदी ( नव गुण अपेक्षा) परि० वि०, पुरुष या पुरुष नपुसंक वेदी सूक्ष्म सं० और यथा० अवेदी ।
३ राग द्वार-४ संयती सरागी और यथाख्यात संयती वीतरागी।
४ कल्प द्वार-कल्प के ५ भेद, नीचे अनुसार--..
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org