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________________ नियंठा। (६०३) कषाय मरणांतिक ) वकुश में तथा पडिसे० में ५ समु० (वे०, क०, म०, वै० ते० ) कषाय कुशील में ६ समु० (केवली सयु० नहीं ) निर्ग्रन्थ में नहीं स्नातक में होवे तो केवली समुद्घात । ३२ क्षेत्र द्वार-पांच नियंठा लोक के असंख्यातवें भाग में होवे और स्नातक लोक के असंख्यातवें भाग में होवे अथवा समग्र लोक में (केवली समु० अपेक्षा) होवे ३३ स्पर्शना द्वार-क्षेत्र द्वार वत् । ३४ भाव द्वार-प्रथम ४ नियंठा क्षयोपशम भाव में होवे । निग्रन्थ उपशम तथा क्षायिक भाव में होवे और स्नातक क्षायिक भाव में होवे । ३५ परिमाण द्वार-( संख्या प्रमाण ) स्यात् होवे, स्यात् न होवे, होवे तो कितना ? नाम वर्तमान पर्याय अपेक्षा पूर्व पर्याय अपेक्षा जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट पुलाक १-२-३ प्रत्येक सौ १..२-३ प्रत्येक हजार (२०० से १०० (२सेह हजार) वकुश " " प्रत्येक सो कोड (नियमा) पडिसेवण , , कषाय कुशील , प्रत्येक हजार . प्रत्येक हजार क्रोड , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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