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________________ नियंठा। ( ६०१) २३ उदीरण द्वार-पुलाक ६ कम (आयु-मोह सिवाय ) की उदो० करे वकुश पडिसेवण ६-७ तथा ८ को उदेरे कषाय कुशीन ५-६-७-८ कर्म उदेरे (५ होवे तो आयु, मोह वेदनीय छोड़कर ), निग्रन्थ २ तथा ५ कर्म उदर ( नाम-गात्र ) आर स्नातक अनुदारिक । २४ उपसंपझणं द्वार-पुलाक, पुलाक को छोड़कर कषाय कुशील में अथवा असंयम में जावे, वकुश वकुश को छोड़ कर पडिसेवण में, कषाय कुशील में असंयम में तथा संयमासंयम में जाये । इसी प्रकार चार स्थान पर पडिसेवण नियंठा जावे कषाय कुशील ६ स्थान पर (पु०, २०, पडि०, असंय०, संयमासं० तथा निग्रन्थ में ) जावे निग्रंथ निग्रन्थ पने को छोड़ कर कपाय कुशील स्नातक तथा असंयम में जाये और स्नातक मोक्ष में जावे । ___ २५ संज्ञा द्वार--पुलाक, निग्रन्थ और स्नातक नोसंज्ञा बहुता । वकुश, पडि सेवण और कषाय कुशील संज्ञा बहुता और नोसंज्ञा बहुता। २६ अाहारिक द्वार पनियंठा अाहारिक और स्नातक आहारिक तथा अनाहारिक।। २७ भव द्वार-पुलाक और निग्रन्थ भव करे ज०१ उ० ३ वकुश, पडि०, कषाय कु० ज० १ उ० १५ भव करे और स्नातक उसी भव में मोक्ष जावे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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