SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 612
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थोकडा मंग्रह। १८ कषाय द्वार-प्रथम ३ नियंठा में सकपायी ( संज्वल का चोक ) कषाय कुशील में सज्वलन ४ ३.२ १ निग्रंथ अपायी ( उपशम तथा क्षीण ) और स्नातक अकषायी ( क्षीण ) १० लेश्या द्वार-पुलाक, वकुश, पडिसेण में ३ शुभ लश्या, कषाय कुशील में ६ लेश्या, निग्रन्थ में शुक्ल लेश्या स्नातक में शुक्ल लेश्या अथवा अलेशी। २० परिणाम द्वार-प्रथम नियंठा में तीन परिणाम १ हायमान २ वर्धमान ३ अवस्थित -१ घटता २ बढता ३ समान ) हाय वर्ष की स्थिति ज० १ समयकी उ० अं० मु० अवस्थित की ज०१ समय उ० ७ समय की, निग्र थ में वर्धमान परिणाम अवस्थित में २ परिणाम स्थिति ज०१ समय, उ० अं० मु० स्नातक में २ (वर्ध० अव० ) वध की स्थिति ज०१ समय, उ० अं० ० अब० की स्थिति ज० अं० मु० उ० देश शी पूर्ण क्रोड़ की । २१ बन्ध द्वार-पुलाक ७ क ( आयुष्य लिव य ) बान्धे, वकुश और पडिसेवण ७ ८ कर्म बान्धे, कपाय कुशील ६-७ तथा ८ कर्म ( आयु-मोह सिवाय ) बान्धे निग्रन्थ १ शाता वेदनीय बान्धे और स्नातक शाता वेद. नीय बान्धे अथवा अबन्ध ( नहीं बान्धे ) ___ २२ बेदे द्वार-४ नियंठा ८ कर्म वेदे निग्रन्थ ७ कर्भ ( मोह सिवाय ) वेदे स्नातक ४ कर्म (अघाती) वेदे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy