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________________ छ काय के बोल । ( ४६ ) ४ भुजपर-( सर्प)-जो भुजाओं ( हाथों ) के बल चले सो भुजपर कहलाते हैं । इनके विशेष नाम-१ कोल २ नकुल ( नोलिया) ३ चूहा ४ विस्मरा ५ ब्राह्मणी ६ गिलहरी ७ काकीड़ा ८ चंदन गोह (ग्राह)ह पाटला गोह (ग्राह विशेष) इत्यादि अनेक नाम हैं। इनका "कुल" नव लाख करोड़ जानना। ५ खेचर-प्राकाश में उड़ने वाले जीत्र खेचर (पक्षी) कहलाते हैं। इनके चार भेदः-१ चर्म पंखी २ रोम पंखी ३ समुद्ग पंखी ४ वीनत (विस्तृत) पंखी। १ चर्म पंखी-बगुला, चामचिड़ी कानकटिया, चमगीदड़ इत्यादि चमड़े की पांख वाले सो चर्म पंखी। २ मयुर ( मोर ), कबूतर, चक ने (चिड़ी), कौवे, कमेड़ी, मैना, पोपट, चील, बुगले, कोयल, ढेल, शकरे, हौल, तोते, तीतर, बाज इत्यादि रोम ( बाल ) की पांख वाले सो रोम पंखी ये दो प्रकार के पक्षी अढ़ाई द्वीप के बाहर भी मिलते हैं और अन्दर भी। ३ समुद्ग पंखी-डब्बे जैसे भीड़ी हुई गोल पांख वाले सो समुद्ग पंखी। ४ विचित्र प्रकार की लम्बी व पोली पांख वाले सो वीतत पंखी ये दोनों प्रकार के पती अढाई द्वीप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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