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________________ थोकडा संग्रह | ३ गंडीपद - ( सोनार के एरण जैसे गोल पांव वाले ) ऊंट, गेंडे, आदि । ४ श्वानपद - ( पंजे वाले जानवर ) बाघ, सिंह, चीता, दीपड़े ( धब्बे व ले चीते ) कुत्ते, बिल्ली, लाली, गीदड़, जरख, रींछ, बन्दर इत्यादि । स्थलचर का " कुल दस लाख करोड़ जानना | 17 ( ४८ ) ३ उरपर - ( सर्प) के भेद:- हृदय बल से ज़मीन पर चलने वाले सो उरपर । इनके चार भेद १ अहि २ अजगर ३ असालिया ४ महुरंग । १ अहि-पांचों ही रंग के होते हैं - १ काला २ नीला ३ लाल, ४ पीता ५ सफेद । २ मनुष्यादि को निगल जावे सो अजगर । ३ साल यह दो घड़ी में १२ योजन ( ४८ कोस ) लम्बा हो जाता है चक्रवर्ती ( बलदेवादि ) की राजधानी के नीचे उत्पन्न होता है । इसे भस्म नामक दाह होता है जिससे आस पास की ४८ कोस की पृथ्वी गल जाती है जिससे आस पास के ग्राम, नगर, सेना, सब दब कर मर जाते हैं । इसे असालिया कहते हैं । 1 ४ उत्कृष्ट एक हजार योजन का लम्बा शरीर वाला महुरग (महोर्ग ) कहलाता है यह पढ़ाई द्वीप के बाहर रहता है । उरपर (सर्प) का "कुल" दश लाख करोड़ जानना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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