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________________ समुद्धात-पद | ३ तैजस ४ वैक्रिय ५ मरणांतिक " " ܕܪ ܕܕ ६ कषाय ७ वेदनी 91 19 ८ श्रसमोहिया, " " " १ सर्व से २ उनसे ३, ४ " "" 59 39 " " ३ तैजस ४, वैक्रिय ५, मरणांतिक,,,, ६,, वेदनी असंख्य,, ४, वेदनी ७ कषाय " ८,, समोहिया " अनंत असं० विशेष असं. मनुष्य का अल्प बहुत्व १ सर्व सेकम आहा. समुं. वाले २ उनसे के, समु, संख्या, गुणा संख्या. Jain Education International " " " ,,, संख्या. " " " " संख्या. " असं. वेदनी श्रसमोहिया 11 " ܕ 19 ५, श्रसमो. 17 19 99 19 ,, देवता का अल्प बहुत्व १ सर्व से कम तै. समु. वाले " २ उनसे मर. स. वाले . गु. ३,, वेदनी समु, वाले, " ܙܐ ܙ ܕܕ ܕ ܕܕ 11 (५८७ ) 19 19 "" www.A ४, कषाय,,,” संख्या." ५, वैक्रिय ६,, असमोहिया,,,,,,,, " " " " तिर्यंच पंचेद्रिय का अ.ब. १ सर्व से कम तै. समु.वाले २ उनसे वै. समु.वाले अ. गु ५ कपाय , ६. श्रसमो. पृथ्व्यादि ४ स्था० का अल्प बहुत्व कम मरणांतिक समु० वाले कषाय समु० वाले संख्या० गुणा विशेषाइया असंख्या ० ३,, मरणांतिक ,” ” ” ” """" ४, वेदनी For Private & Personal Use Only """" 19 93 35 97 " "" " "3 www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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