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________________ समुद्धात-पद। ( ५८५) तैजस समु० अनंती करी और भविष्य में करे तो १-२-३ जाव अनंती करेगा एवं तैजस समु०१५ दण्डक में मरणांतिक अनुसार। । आहारिक समु० मनुष्य सिवाय २३ दण्डक के जीवों ने अपने तथा अन्य २३ दण्डक रूप से नहीं करी और न करेगें, एकेक २३ दण्डक के जीव ने मनुष्य रूप से आहारिक समु० जो करी हो तो १.२.३ और भविष्य में जो करे तो १-२-३-४ वार करेंगे। केवली सा० मनुष्य सिव य २३ दण्डक के जीवों ने अपने तथा अन्य २३ दण्डक रूप से भून काल में नहीं करी और न भविष्य में करेंगे, मनुष्य रूप से भूत काल में नहीं की और भविष्य में करें तो १ वार करेंगे । एकेक मनुष्य २३ दण्डक रूपसे केवली समु० करी नहीं और करेंगे भी नहीं । एकेक मनुष्य मनुष्य रूप से केवली समु० करी होवे तो १ चार और करेंगे तो भी १ वार । ६ अनेक जीव परस्पर:-अनेक नेरियों ने नेरिये रूप से वेदनीय समु० भूत में अनंती करी, भविष्य में अनंती करेगें एवं २४ दण्डकों का समझना । शेष २३ दण्डक में भी नारकी चत् । बेदनी के समान ही कषाय, मरणांतिक, वैक्रिय और तैजस समु० का समझना परन्तु वैक्रिय समु० १७ दण्डक में और तैजस समु० १५ दण्डक में कहनी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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