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समुद्धात-पद।
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- समुद्घात-पद:-- (श्री पन्नवणाजी सूत्र ३६ वाँ पद )
जीव के लिये हुवे पुद्गल जिस जिस रूप से परिणमते हैं उन्हें उस उस नामसे बताया गया है । जैसे कोई पुद्गल वेदनी रूप परिणमे, कोई कषाय रूप परिण में, इन ग्रहण किये हुवे पुद्गलों को सम और विषम रूप से परिणम होने को समुद्घात कहते हैं। ..
१ नाम द्वार-वेदनी, कषाय, मरणान्तिक, वैक्रिय तेजस, पाहारिक और केवली समुद्घात । ये सात समुद्र घात २४ दण्डक ऊपर उतारे जाते हैं।
समुच्चय जीवों में ७ समु०, नारकी में ४ समु. प्रथम की, देवता के १३ दण्डक में ५ समुद्घात प्रथम की, वायु में ४ समु० प्रथम की, ४ स्थावर ३ विकलेन्द्रिय में ३ समु० प्रथम की, तिर्यंच पंचेन्द्रिय में ५ प्रथम की, मनुष्य में ७ समुद्धात पावे ।
२ काल द्वार-६ समु० का काल असंख्यात समय और केवली समुद्घात का काल - समय का ।
(३) २४ दण्डक एकेक जीव की अपेक्षा-वेदनी, कषाय , मरणान्ति क, चौक्रिय और तैजस समु० २४ दण्डक में एक एक जीव भूतकाल में अनन्ती करी और भविष्य
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