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________________ (५६६) थोकडा संग्रह। ३० प्रदेश स्पर्शना द्वार धर्मा० का एक प्रदेश धर्मा० के कितने प्रदेशों को स्पर्श ? ज.३ प्र.उ.६प्र.को स्पर्श " , , , अधर्मा०, , , ,, ,, ? ज.४ प्र.उ.७ प्र.को स्पर्श " , , ,, श्राकाशा०,, ,, , ? ज.७ प्र. उ.७ प्र., ., " ,,जव पुद्गल,, ,, ,, ,, ,, ? अनंत प्रदेशों का स्पर्श " , , काल द्रव्य ,,, , , , ? स्यात् अनन्त स्पर्श स्यात् नहीं एवं अधर्मा० प्रदेश स्पर्शना समझनी। आकाशा० का १ प्रदेश धर्मा० का ज० १-२-३ प्रदेश, उ० ७ प्रदेश को स्पर्श.शेष प्रदेश स्पर्शना धर्मास्तिकायवत् जानना। जीव का १ प्रदेश धर्मा० काज.४ उ.७ प्रदेश को स्पर्शे । पुद्गल० , , , , , , , , , शेष प्र० स्पर्शना काल द्रव्य एकसमय, ,, प्रदेश को स्यात् स्पर्श, धर्मास्तिकाय वत् स्यात् नहीं । पुद्गल० के २ प्रदेश ,, ज० दुगणा से दो अधिक (६) प्रदेश को स्पर्शे पारै उ० पांच गुणे से २ अधिक ५४२-१०४२=१२ प्रदेश स्पर्श इसी प्रकार ३-४-५ जीव अनन्त प्रदेश ज० दुगणे से २ अधिक उ० पांच गुणे से अधिक प्रदेश को स्पर्श । . ३१ अल्प बहुत्व द्वार:-द्रव्य अपेक्षा-धर्म, अधर्म आकाश परस्पर तुल्य है, उनसे जीव द्रव्य अनन्त गुणा, उनसे पुद्गल अनन्त गुणा और उनसे काल अनन्त । प्रदेश- अपेक्षा- सर्व से कम धर्म, अधर्म का प्रदेश उनसे जीव के प्रदेश अनन्त गुणा, उनसे पुद्गल के प्रदेश अनन्त । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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