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________________ (५५२) थोकडा संग्रह। * तीर्थंकर के ३४ अतिशय * १ तीर्थंकर के केश, नख न बढ़े, सुशोभित रहे २ शरीर निरोग रहे ३ लोही मांस गाय के दूध समान होवे ४ श्वासोश्वास पद्म कमल जैसा सुगन्धित होवे ५ आहार निहार अदृश्य ६ आकाश में धर्म चक्र चले ७ आकाश में ३ छत्र शोभे तथा दो चामर उड़े ८ आकाश में पाद पीठ सहित सिंहासन चले आकाश में इन्द्रध्वज चले १० अशोक वृक्ष रहे ११ भामण्डल होवे १२ विषम भूमि सम होवे १३ कण्टक ऊंधे (आँधे ) हो जावे १४ छः ही ऋतु अनुकूल होवे १५ अनुकूल वायु चले १६ पांच वर्ण के फूल प्रगट होवे १७ अशुभ पुद्गलों का नाश होवे १८ सुगन्धि वर्षा स भूमि सिंचित होवे १६ शुभ पुद्गल प्रगट होवे २० योजन गामी वाणी की ध्वनि होवे २१ अर्धमागधी भाषा में देशना देवे २२ सर्व सभा अपनी २ भाषा में समझे २३ जन्म वैर, जाति वैर शान्त होवे २४ अन्यमती भी देशना सुने व विनय करे २५ प्रतिवादी निरुत्तर बने (२६) २५.यो. तक किसी जात का रोग न होवे २७ महामारी (लेग ) न होवे २८ उपद्रव न होवे २६ स्वचक्र का भय न होवे ३० पर लश्कर का भय न होवे ३१ अतिवृष्टि न होवे ३२ अनावृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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