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________________ र ५५०) थोकडा संग्रह। २३ चतुर्विध संघकी , सनतकुमार चक्र० भगवती, वैयावच्च से. पूर्व भव में २४ उत्कृष्ट भावसे , बाहुबल जी ऋषभ देव मुनि सेवा करने से पूर्व भव में चरित्र २५ शुद्ध अभिग्रह करने से, पांच पाण्डव ज्ञाता सूत्र २६ धर्म दलाली ,, , श्रीकृष्ण वासुदेव अंतगढ, २७ सूत्र ज्ञान की भक्ति , उदाई राजा भगवती, २८ जीव दया पालने से ,, धरुचि अणगार ज्ञाता , २६ व्रत से गिरते ही अराणिक अवश्यक सावधान होने से अनगार ३० आपत्ति आने पर , खंदक अणगार उत्तरा धैर्य रखने से ३१ जिन राज की भक्ति , प्रभावती करने से ३२ प्राणों का मोह छोड़, मेघरथ राजा शांन्तिकर भी दया पालने से नाथ चरित्र ३३ शक्ति होने पर भी, प्रदेशी राजा रायप्रश्नीक्षमा करने से य सूत्र ३४ सहोदर भाइयों का , राम बलदेव ६३श्ला-पु. भी मोह छोड़ने से चरित्र ३५ देवादि के उपसर्ग , काम देव उपासक सहने से ध्ययन । रानी Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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