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________________ खण्ड! जोयणा । (५३१ ) Lon ४ वृतल वैताढ्य १००० यो. २५० यो. १०००.० चित,विचि.,जमग,सुमग१००० यो.२५० यो. १०००० मेरु पर्वत ६६००० यो.१०००यो.१००६० यो. मेरु पर्वत पर ४ वन है-भद्रशाल, नंदन, सुमानस और पण्डक वन । १ भद्रशाल वन-पूर्व-पश्चिम २२००० यो० उत्तर दक्षिण २३० यो विस्तार है । मेरु से ५० यो. दर चार ही दिशाओं में ४ सिद्धायतन हैं जिनमें जिन प्रतिमा है। मेरु से ईशान में ४ पुष्करणी ( वावड़ियें ) हैं ५० यो. लम्बी, २५ यो, चौड़ी १० यो. गहरी हैं। वेदिका वनखण्ड तोरणादि युक्त हैं। चार बावड़ियों के अन्दर ईशानेन्द्र का महल है ! ५०० यो. ऊंचा, २५० यो. विस्तार वाला है । नीचे लिखी रचना अनुसार अग्निकोन में ४ वावड़िये हैं-उत्पला, गुम्मा, निलना, उज्वला के अन्दर . शक्रेन्द्र का महल है। वायु कोन में ४-लिंगा, भिगनाभा, अंजना, अंजन प्रभा के अन्दर शक्रेन्द्र का प्रासाद सिंहासन है। नैऋत्य कोन में ४-श्रीकन्ता, श्रीचन्दा, श्रीमहीता, श्रीन लीता में ईशानेन्द्र का प्रासाद सिंहासनहै आठ विदिशा में ८ हस्ति कूट पर्वत हैं । पद्मुत्तर, नीलवंत, सुहस्ति, अंजनगिरि, कुमुद, पोलाश, विठिस और रोयणगिरि ये प्रत्येक १२५ योजन पृथ्वी में ५०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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