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________________ काय-स्थिति। (५०१) * काय-स्थिति * समजन (स्पष्टी करण):-स्थिति दो प्रकार की १ भव स्थिति २ काय स्थिति,एक भव में जितने समय तक रहे वो भव स्थिति जैसे-पृथ्वी काय की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष की । काय स्थिति-पृथ्वी काय प्रादि एकही काय के जीव उसी काया में बारंबार जन्म मरण करते रहें और अन्य काय, अप, तेउ, वायु आदि में नहीं उपजे वहां तक की स्थिति-वो काय स्थिति। ___ पुढवी काल-द्रव्य से असं० उत्स० अवस० काल, क्षेत्र से असं० लोक, काल से असंख्यात काल, भाव से अंगुल के असं० भाग के आकाश प्रदेश जितने लोक । ___असंख्यात काल-द्रव्य, क्षेत्र, काल से ऊपर वत् भाव से प्रावलिका के असंख्यातवें भाग के समय जितने लोक। __ अर्ध पुद्गल परावर्तन काला द्रव्य से अनन्त उत्स० अवस० क्षेत्र से अनन्ता लोक, काल से अनन्त काल और भाव से अर्ध पुद्गल परावर्त्तन । वनस्पति काल-द्रव्य से अनन्त उत्स० अवस०, क्षेत्र से अनन्त लोक, काल से अनन्त काल और भाव से असं० पुद्गल परावत्तेन । अ० सा०प्रनादि सांत, सा० सा०-सादि सांत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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