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________________ व्यवहार समाकत के ६७ बाल | करे (३) निर्वेग- शरीर अथवा संसार की अनित्यता पर चिंतन करे, और बने वहां तक इस मोह मय जगत से अलग रहे अथवा जग तारक जिनराज की दिक्षा लेकर कम शत्रुओं को जीते व सिद्ध पद को प्राप्त करने की हमेशा भालापा ( भावना ) रक्खे, (४) अनुकम्पा - अपनी तथा पर की आत्मा की अनुकम्पा कर अथवा दुखी जीवों पर दया लांव (५) आस्था (ता ) - त्रिलोक पूज्यनीक श्रीवीतराग देव के वचनों पर दृढ श्रद्धा रक्वे हिताहित का विचार करे अथवा अस्तित्व भाव में रमण करे ये ही व्यवहार समकित के लक्षण हैं । अतः जिस विषय में अपूर्णता होवे उसे पूरी करे । (६) भूषण पांच:- (१) जैन शासन में धैर्यवन्त हो कर शासन का प्रत्येक कार्य धैर्यता से करे (२) जैन शासन का भक्तिवान् होवे ( 3 ) शासन में क्रियावान् होवे (४) शासन મેં चतुर होवे । शासन के प्रत्येक कार्य को ऐसी चतुराई (बुद्धि) से करे कि जिससे वह कार्य निर्विघ्नता समाप्त हो जावे ( ५ ) शासन में चतुर्विध संघ की भक्ति तथा बहु सत्कार करने वाला होवे । इन पांच भूषणों से शासन की शोभा होती है । से (७) दूषण पांच:- (१) शङ्का जिन वचन में शङ्का करे (२) कंखा - अन्य मतों का आडम्बर देख कर उनकी वाञ्छा करे (३) विति गिच्छा-धर्म की करणी के फल में Jain Education International ( ४६७ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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